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31 जनवरी, 2014

"सुमन हमें सिखलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
"सुमन हमें सिखलाते हैं"
काँटों में पलना जिनकी,
किस्मत का लेखा है।
फिर भी उनको खिलते,
मुस्काते हमने देखा है।।
कड़ी घूप हो सरदी या,
बारिस से मौसम गीला हो।
पर गुलाब हँसता ही रहता,
चाहे काला-पीला हो।।
ये उपवन में हँसकर,
भँवरों के मन को बहलाते हैं।
दुख में कभी न विचलित होना,
सुमन हमें सिखलाते हैं।।

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