यह ब्लॉग खोजें

29 सितंबर, 2013

"लड्डू सबके मन को भाते!" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
 एक बालकविता

लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे,
नारंगी-से कितने सारे!

बच्चे इनको जमकर खाते,
लड्डू सबके मन को भाते!

pranjal_laddu2

प्रांजल का भी मन ललचाया,
लेकिन उसने एक उठाया!

prachi_laddu

अब प्राची ने मन में ठाना,
उसको हैं दो लड्डू खाना!

तुम भी खाओ, हम भी खाएँ,
लड्डू खाकर मौज़ मनाएँ!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।