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29 नवंबर, 2011

‘‘तीखी-मिर्च सदा कम खाओ’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

तीखी-तीखी और चर्परी।
हरी मिर्च थाली में पसरी।।

तोते इसे प्यार से खाते।
मिर्च देखकर खुश हो जाते।।

सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती।
किन्तु पेट में जलन मचाती।।

जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं।
सुबह-सुबह वो पछताते हैं।।

दूध-दही बल देने वाले।
रोग लगाते, मिर्च-मसाले।

शाक-दाल को घर में लाना।
थोड़ी मिर्ची डाल पकाना।।

सदा सुखी जीवन अपनाओ।
तीखी-मिर्च सदा कम खाओ।।

11 टिप्‍पणियां:

  1. हमने तो यही सुना था कि हरी मिर्च खाने से शरीर की पाचन शकित ठीक रहती है।

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  2. जाट देवता संदीप पवाँर बेटा!
    मैंने तो कहीं भी इस कविता में हरीमिर्च खाने को मना नहीं किया है।
    मगर आप ज्यादा मत खा लेना। नहीं तो सुबह यह अपना रंग जरूर दिखा देंगी!

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  3. जी आपने सही कहा, नहीं तो सुबह खूब पछताना पडॆगा। हा-हा-हा

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  4. तीखी मिर्च पर मीठी कविता बहुत सुन्दर लगी|

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  5. वाह बहुत सुन्दर कविता बन गयी तीखी मिर्च पर्।

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  6. अच्छी सीख देती मजेदार कविता बन गयी बच्चों और बड़ों के लिये

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  7. बच्चों के लिये सही सलाह,वैसे बडों को भी इसका उपयोग मात्रा में ही करना चाहिये.धन्यवाद,

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  8. तीखी मिर्ची का कमाल देखने को मिला .....आभार

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  9. मिर्ची पर कमाल की प्रस्तुति..

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