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29 नवंबर, 2011

‘‘तीखी-मिर्च सदा कम खाओ’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

तीखी-तीखी और चर्परी।
हरी मिर्च थाली में पसरी।।

तोते इसे प्यार से खाते।
मिर्च देखकर खुश हो जाते।।

सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती।
किन्तु पेट में जलन मचाती।।

जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं।
सुबह-सुबह वो पछताते हैं।।

दूध-दही बल देने वाले।
रोग लगाते, मिर्च-मसाले।

शाक-दाल को घर में लाना।
थोड़ी मिर्ची डाल पकाना।।

सदा सुखी जीवन अपनाओ।
तीखी-मिर्च सदा कम खाओ।।

22 नवंबर, 2011

"बेटी कुदरत का उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


बिटियारानी कितनी प्यारी।
घर भर की है राजकुमारी।।

भोली-भाली सौम्य-सरल है।
कलियों जैसी यह कोमल है।।

देवी जैसी पावन सूरत।
ममता की है जीवित मूरत।।

बेटी कुदरत का उपहार।
आओ इसको करें दुलार।।

18 नवंबर, 2011

"लौकी होती गुणकारी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

लौकी होती गुणकारी है।
बीमारी इससे हारी है।।

रोज हाट से लौकी लाओ।
छीलो-काटो और पकाओ।।

सब्ज़ी या रायता बनाओ।
रोटी-पूड़ी के संग खाओ।।

चाहे इसका जूस निकालो।
थोड़ा काला नमक मिलालो।।

रोज सवेरे यह रस पी लो।
आनन्दित हो जीवन जी लो।।

यह रसायन हितकारी है।
इसीलिए लौकी प्यारी है।।

03 नवंबर, 2011

"खीरा होता है गुणकारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

सूरत इसकी कितनी प्यारी।
खीरा होता है गुणकारी।।

हरा-भरा है और मुलायम।
सबका मोह रहा है यह मन।।

छीलो-काटो नमक लगा लो।
नींबू का थोड़ा रस डालो।।

भूख बढ़ाता, गैस हटाता।
बीमारी को दूर भगाता।।

चाहे तो रायता बनाओ।
या इसको सलाद में खाओ।।

अपने मुँह का स्वाद बढ़ाओ।
नित्य-नियम से घर में लाओ।।