यह ब्लॉग खोजें

15 अक्तूबर, 2010

“यह दशानन ज्ञानवान था।” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

rawana_5जो है एक शीश को ढोता।
बुद्धिमान वह कितना होता।।  

यह दशानन ज्ञानवान था।
बलशाली था और महान था।।

यह था वेद-शास्त्र का ज्ञाता।
यम तक इससे था घबराता।।

पूजा इसका नित्य कार्य था।
यह दुनिया में श्रेष्ठ आर्य था।।

किन्तु दम्भ जब इसमें आया।
इसने नीच कर्म अपनाया।।

अनाचार अब यह करता था।
सारा जग इससे डरता था।।
rama
जब इतने आतंक मचाया।
काल राम तब बनकर आया।।

रूप धरा था वनचारी का।
अन्त किया अत्याचारी का।।

जो जग से आतंक मिटाता।
वो घर-घर में पूजा जाता।।

जो पापी को देता मार।
होती उसकी जय-जयकार।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर बात बताने वाली कविता .....
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. जो पापी को देता मार।
    होती उसकी जय-जयकार।।
    सुन्दर रचना सुन्दर विचार

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह वाह्…………बहुत सुन्दर संदेश देती सार्थक रचना।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर संदेश देती सार्थक रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर सन्देश देती बहुत प्यारी रचना नानाजी ,
    आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ !!
    अनुष्का

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर सन्देश देती हुई बहुत ख़ूबसूरत रचना!

    जवाब देंहटाएं

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।