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25 जून, 2010

“भोजन सदा खिलाना!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

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रबड़ प्लाण्ट का वृक्ष लगा है,
मेरे घर के आगे!
पत्ते खाने बकरे-बकरी,
आये भागे-भागे!

हुए बहुत मायूस,
धरा पर पर पत्ता कोई न पाया!
इन्हे उदास देखकर मैंने,
अपना हाथ बढ़ाया!!


झटपट पत्ता तोड़ पेड़ से,
हाथों में लहराया!
इन भोले-भाले जीवों का,
मन था अब ललचाया!!
IMG_1515आँखों में आशा लेकर,
सब मेरे पास चले आये!

चक-उचककर बड़े चाव से
सबने पत्ते खाये!!
IMG_1519 दुनिया के जीवों का,
यदि तुम प्यार चाहते पाना!
भूखों को सच्चे मन से
तुम भोजन सदा खिलाना!!



अब इस बाल-कविता को सुनिए-
अर्चना चावजी के स्वर में-




17 जून, 2010

"माँ!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

imageमाता के उपकार बहुत,
वो भाषा हमें बताती है!
उँगली पकड़ हमारी माता,
चलना हमें सिखाती है!!


दुनिया में अस्तित्व हमारा,
माँ के ही तो कारण है,
खुद गीले में सोती वो,
सूखे में हमें सुलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..


देश-काल चाहे जो भी हो,
माँ ममता की मूरत है,
धोकर वो मल-मूत्र हमारा,
पावन हमें बनाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..


पुत्र कुपुत्र भले बन जायें,
होती नही कुमाता माँ,
अपने हिस्से की रोटी,
पुत्रों को सदा खिलाती  है!
उँगली पकड़ हमारी……..


ऋण नही कभी चुका सकता,
कोई भी जननी माता का,
माँ का आदर करो सदा,
यह रचना यही सिखाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..

15 जून, 2010

“भक्तों जोड़ो इनसे नाता” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

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सुन्दर-सुन्दर और सजीले!

आकर्षक और रंग-रंगीले!!

शिवशंकर और साँईबाबा!
यहाँ विराजे काशी-काबा!!

कृष्ण-कन्हैया अलबेला है!
कोई गुरू कोई चेला है!!

जग-जननी माँ पार्वती हैं!
धवल वस्त्र में सरस्वती हैं!!

आदि-देव की छटा निराली!
इनकी सूँड बहुत मतवाली!!

जो जी चाहे वो ले जाओ!
सिंहासन पर इन्हें बिठाओ!!

मन में हों यदि नेक भावना!
पूरी होंगी सभी कामना!!

बेच रहा मैं भगवानों को!
खोज रहा हूँ श्रीमानों को!!

ये सब मेरे भाग्य-विधाता!
भक्तों जोड़ो इनसे नाता!!

11 जून, 2010

"चन्दा-मामा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

!! चन्दा-मामा !!
नभ में कैसा दमक रहा है। 
चन्दा मामा चमक रहा है।।

कभी बड़ा मोटा हो जाता। 
और कभी छोटा हो जाता।।


करवा-चौथ पर्व जब आता। 
चन्दा का महत्व बढ़ जाता।। 

मम्मीजी छत पर जाकर के। 
इसको तकती हैं जी-भर के।। 

यह सुहाग का शुभ दाता है। 
इसीलिए पूजा जाता है।।

जब भी बादल छा जाता है। 
तब "मयंक" शरमा जाता है।।

लुका-छिपी का खेल दिखाता। 
छिपता कभी प्रकट हो जाता।।


 धवल चाँदनी लेकर आता। 
आँखों को शीतल कर जाता।। 

सारे जग से न्यारा मामा। 
सब बच्चों का प्यारा मामा।।


(सभी चित्र गूगल सर्च से साभार)

08 जून, 2010

“मधुमक्खी है नाम तुम्हारा!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

मधुमक्खी
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मधुमक्खी है नाम तुम्हारा।   
शहद बनाती कितना सारा।। 


इसको छत्ते में रखती हो।  
लेकिन कभी नही चखती हो।। IMG_1108 
कंजूसी इतनी करती हो।  
रोज तिजोरी को भरती हो।। 


दान-पुण्य का काम नही है।  
दया-धर्म का नाम नही है।। 


इक दिन डाका पड़ जायेगा।  
शहद-मोम सब उड़ जायेगा।। 


मिट जायेगा यह घर-बार।  
लुट जायेगा यह संसार।। 


जो मिल-बाँट हमेशा खाता।  
कभी नही वो है पछताता।।

06 जून, 2010

"कल मुझको तुम भूल न जाना!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

आमों के बागों में जाकर,
आम टोकरी भरकर लाया!
घर के लोगों ने जी भरकर,
चूस-चूस कर इनको खाया!!
प्राची बिटिया और प्रांजल,
बड़े चाव से इनको खाते!
मीठे-मीठे और रसीले,
आम बहुत इनको हैं भाते!!
राज-दुलारो, नन्हे-मुन्नों,
कल मुझको तुम भूल न जाना!
जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा,
इसी तरह तुम मुझे खिलाना!!


01 जून, 2010

“शायद वर्षा जल्दी आये” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

टर्र-टर्र मेंढक टर्राए!
शायद वर्षा जल्दी आये!

बाजारों में आम आ गये,
अमलतास पर फूल छा गये,
लेकिन बारिस नजर न आये!

टर्र-टर्र मेंढक टर्राए!
शायद वर्षा जल्दी आये!

सूख गये सब ताल-तलैय्या, 
छोटू कहाँ चलाए नैय्या!
सबको गर्मी बहुत सताए!

टर्र-टर्र मेंढक टर्राए!
शायद वर्षा जल्दी आये!